मानव जाति इस धरती पर जब से प्रकट हुआ तब से अब तक वह जीवचेतना में जिया है, मानवचेतना में जिया नहीं है. जीवचेतना में संवेदनशीलता (शरीर मूलकता) को ही सर्वोच्च मूल्य माना जाता है. अभी के जो भी systems बने हैं (जैसे – शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार, उत्पादन, विनिमय) वे सभी संवेदनशीलता पर आधारित हैं, जो “अधूरी समझ” है. इस अधूरी समझ से मानव जाति ने अच्छे से अच्छे जितने भी डिजाईन/सिस्टम्स बनाए – वे व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र, अन्तर्राष्ट्र और प्रकृति के साथ व्यवस्था का समीकरण कर पाने में असमर्थ रहे हैं. इन systems में अव्यवस्था से हुई समस्याओं से “पीड़ा” होना स्वाभाविक है. इन्ही systems में कार्यरत/जिम्मेदार संवेदनशील लोगों का इस पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए उपाय तलाशना, कार्यक्रम बनाना स्वाभाविक रहा. AICTE का induction program, Technical Universities में Human Values Professional Ethics प्रोग्राम, दिल्ली सरकार द्वारा चलाया जाने वाला Happiness Curriculum Program इसके current examples हैं.
सबसे पहली बात – ये सभी कार्यक्रम स्वागतीय हैं. ये मानव में वर्तमान अव्यवस्था से पीड़ा / व्यवस्था की अपेक्षा / परिवर्तन की कामना के द्योतक हैं. साथ ही ये संसार के लिए मध्यस्थ दर्शन के परिचय के द्वार भी हैं. इन्ही से ही वे व्यक्ति निकल के आयेंगे जो मध्यस्थ दर्शन को पूरा यथावत अध्ययन करके प्रमाणित करेंगे. ध्यान से देखें तो हम स्वयं भी इसी विधि से इस दर्शन या बाबा जी से जुड़े. दर्शन के लोकव्यापीकरण में इनकी अहम् भूमिका है. निम्न प्रस्तुति को इन कार्यक्रमों और उनको संचालित करने वालों/प्रेरणा देने वालों की आलोचना नहीं माना जाए. यहाँ आशय है - मध्यस्थ दर्शन के अध्ययन-अभ्यास में रत लोगों के इन कार्यक्रमों से जुड़ने की approaches को स्पष्ट करना. फिर कौनसी approach लेना है कौनसी नहीं – इसमें हमारी स्वतंत्रता है. कौनसी approach को किसमें विलय होना है – इसका भी अनुमान किया जा सकता है. इसके दो ही approaches हों, ऐसा ज़रूरी नहीं है. इन दो के बीच अनेक हो ही सकती हैं - किन्तु यह सही है कि "पूरे सही" में सारे "अधूरे सही" का अंततोगत्वा विलय होना निश्चित है.
इन सभी कार्यक्रमों में साम्यता या इनके common traits:
(१) अभी systems में “शक्ति केन्द्रित शासन” ही प्रचलित है – इसलिए ये सभी कार्यक्रम शासन विधि से ही चलाये जाते हैं.
(२) इन कार्यक्रमों को चलाने वालों (शासन) का लक्ष्य है – इनके systems में शामिल लोगों को systems में ही निहित अव्यवस्था से होने वाली पीड़ा से राहत मिले. इसके अलावा उनके परोक्ष लक्ष्य भी हो सकते हैं – जैसे व्यक्तिगत यश की कामना, गद्दी पर बने रहने की कामना आदि.
(३) ये कार्यक्रम मध्यस्थ दर्शन के पूरे vision (अखंड समाज सार्वभौम व्यवस्था) के अनुरूप systems में मूलभूत परिवर्तन को नहीं चाहते हैं. यदि व्यक्तिगत रूप में शासन में बैठे लोग ऐसी कामना भी करते हों तो उसको वो अधिकारिक रूप में किसी मंच से स्पष्ट करने का साहस नहीं कर पाते हैं. मध्यस्थ दर्शन और उसका पूरा vision उनको स्पष्ट हो – यह भी कहना मुश्किल है.
(४) कार्यक्रम कैसे चलेगा, क्या चलेगा, चलेगा या नहीं – इसका पूरा control शासन के पास रहता है. अधिकारी बदल जाने के बाद कार्यक्रम बदल सकता है, या बंद हो सकता है. शासन के जिस स्तर से काम होता है उसके ऊपर का स्तर राजी न हो तो कार्यक्रम को कभी भी बंद किया जा सकता है, बदला जा सकता है.
(५) इन कार्यक्रमों की “सफलता” का मूल्यांकन शासन द्वारा इसी आधार पर होता है कि लोगों को अव्यवस्था से होने वाली पीड़ा से कितनी राहत मिली. उनसे इस सफलता को सही से नापना संभव नहीं रहता, क्योंकि उनके पास सफलता का कोई absolute reference नहीं रहता. इसलिए वे लोगों का general फीडबैक, दूसरे जगह पर पीड़ा से राहत के प्रयासों से तुलना, और अपनी general feeling से किये गए assessment को ही मूल्यांकन मान लेते हैं.
मध्यस्थ दर्शन के अध्ययन-अभ्यास में रत लोगों के इन कार्यक्रमों से जुड़ने की दो approaches
Approach – 1:
(१) इन कार्यक्रमों को चलाने की जिम्मेदारी/control शासन के अनुग्रह से स्वयं पर ले ली जाए. या शासन में पद पर बैठे व्यक्तियों को बाहर से नियंत्रित किया जाए.
(२) कार्यक्रम को सफल बनाना लक्ष्य माना जाए, न कि दर्शन को! अपने कार्यक्रम को किसी भी तरह सफल बनाने को ही “संकल्प” माना जाए. कार्यक्रम को अपना अस्तित्व माना जाए. कार्यक्रम के मूल्यांकन को अपना मूल्यांकन माना जाए.
(३) कार्यक्रम की आवश्यकता अनुसार दर्शन के प्रस्तावों को selectively use किया जाए. पूरी बात यथावत न ली जाए. इसमें अपनी कल्पना से और पिछली परंपरा से या अन्य अभ्यास पद्दतियों के inputs को भी आवश्यकता अनुसार जोड़ा जाए, मिलाया जाए.
(४) मध्यस्थ दर्शन को धरती पर मानव जाति के अब तक के इतिहास में आये आदर्शवाद और भौतिकवाद के “विकल्प” स्वरूप में न माना जाए, न ऐसे प्रस्तुत किया जाए. दर्शन के मूल में हुए अनुसंधान, उसके प्रणेता, और उसके पूरे संकल्प और vision के साकार होने में इस कार्यक्रम की उपयोगिता के लिंक को स्पष्ट न किया जाए.
(५) दर्शन में दिए गए मूल्यांकन फ्रेमवर्क के अनुसार स्वयं की स्थिति को स्पष्ट न किया जाए.
(६) कार्यक्रम की अनुकूलता के अनुसार दर्शन के लोकव्यापीकरण कार्यक्रम (जैसे – जीवन विद्या योजना, अध्ययन शिविर आदि) को अपने अनुसार डिजाईन कर लिया जाए. जो अपने डिजाईन के अनुसार न हो, दर्शन के अन्य प्रबोधक आदि, उनको अपने कार्यक्रम में प्रवेश न होने दिया जाए.
(७) अपने नाम और अपने narrative को आगे रखा जाए. दर्शन का narrative पीछे या गौण कर दिया जाए. “बाबा जी या दर्शन का नाम लिया तो प्रोग्राम ही बंद हो जाएगा”, “हम जो कर रहे हैं, बता रहे हैं – यही सार बात है”, “वस्तु को पकड़ो, व्यक्ति को छोडो!”– यह बताया जाए.
Approach – 2:
(१) इन कार्यक्रमों को चलाने की जिम्मेदारी को शासन और उसके तंत्र पर ही छोड़ा जाए. अपनी जिम्मेदारी को दर्शन को यथावत प्रस्तुत करने तक ही रखा जाए.
(२) यदि कार्यक्रम की दिशा दर्शन के vision और उसके स्त्रोत से पूरा जुड़ने की सम्भावना नहीं लगे तो उसको छोड़ दिया जाए. अपने जीने का कार्यक्रम यथावत बना ही रहता है. संसार के साथ किस कार्यक्रम से जुड़ना है, किससे नहीं जुड़ना है – इसमें अपनी स्वतंत्रता रहे.
(३) मध्यस्थ दर्शन के विद्यार्थियों द्वारा अपना narrative इन कार्यक्रमों और उनकी परिस्थितियों के अनुसार बदला न जाए. Root to Fruit connection को बनाए रखा जाए. Root = साधना-समाधि-संयम विधि से श्री ए नागराज द्वारा अनुसंधान पूर्वक मध्यस्थ दर्शन सह-अस्तित्ववाद का उद्घाटन, मानव जाति के लिए अध्ययन पूर्वक जागृत होने का मार्ग, अखंड-समाज सार्वभौम व्यवस्था का vision, इसको साकार होने के लिए तीन योजनायें.
Fruit = उन योजनाओं पर चलते हुए दस सोपानीय परिवार मूलक व्यवस्था में जीने का अभ्यास. अनुकरण-अनुसरण पूर्वक अध्ययन-अभ्यास क्रम में शिक्षा और व्यवस्था को लेकर शोध किया जाना . इन शोध के results को संसार के सामने स्त्रोत और अपने मूल्यांकन की ईमानदारी के साथ प्रस्तुत किया जाना.
(४) दस सोपानीय परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था के सोपानो को अपने जीने में स्थापित किया जाए. पहले परिवार, फिर परिवार समूह, फिर ग्राम,and so on. जहां इन सोपानो में स्वयं जीते हुए आवश्यकता के अनुसार reference institutions (शुद्ध बुद्ध संस्थान) को स्थापित किया जाए.
(५) कार्यक्रम को चलाने वालों को उनके सिस्टम्स में अखंडता-सार्वभौमता को पाने के लिए दर्शन पर आधारित मूलभूत परिवर्तनों/ सूत्रों को दिया जाए. अभी सिस्टम्स में कार्यरत लोग जहां हैं, वहां से सार्वभौम मानव लक्ष्य तक पहुँचने के लिए उपाय/steps सुझाए जाए. अपने reference institutions और जीने के प्रमाणों से उदाहरण दिया जाए. दर्शन पर आधारित शोध के results को प्रस्तुत किया जाए.
(६) इस कार्यक्रम में संलग्न जो वर्तमान शासन के सिस्टम्स से निकल के पूरी तरह दर्शन को समझ के जीना चाहते हैं, उनके लिए अपने जैसे व्यवस्था में जीने के अवसर उपलब्ध कराये जाएँ. हमारा जीने का मॉडल scalable हो. स्थानीयता से जुड़ा हो.
(७) मध्यस्थ दर्शन के प्रस्तावों और उससे निर्गमित योजनाओं को यथावत प्रस्तावित किया जाए. अभी के सिस्टम्स के documents में मध्यस्थ दर्शन के नाम, मूल अवधारणाओं और उसके प्रणेता के नाम को पहुँचाया जाए.
(८) कार्यक्रम को चलाने वाले शासन तंत्र के लोग अपनी सफलता का स्वयं मूल्यांकन करें. उनको जैसा समझ आया है, उसके अनुसार मध्यस्थ दर्शन के स्त्रोत और उनका अध्ययन करने वालों से जो प्रेरणा मिली उसका दर्शन को श्रेय देने या न देने में वे स्वतन्त्र रहे.
(९) इस कार्यक्रम से जुड़े मध्यस्थ दर्शन के विद्यार्थी अपना मूल्यांकन इस अर्थ में करें कि वे दर्शन को कितना यथावत पहुंचा पाए. कार्यक्रम का मूल्यांकन इस अर्थ में किया जाए कि इस कार्यक्रम से दर्शन की तीन योजनाओं के क्रियान्वयन में क्या प्रगति हुई. इन कार्यक्रमों से कितने लोग वर्तमान सिस्टम्स से निकल के आये, दर्शन को यथावत अध्ययन करके अपने जीने में प्रमाणित करने के लिए. शासन के सफलता के पैमानों से, या उनके द्वारा की गयी प्रशंसा से अपना मूल्यांकन न करें.
1 comment:
Please see https://www.deccanherald.com/national/mandatory-induction-programme-688834.html
This newspaper article mentions that this program (which is similar to the AICTE induction program) is based on some generic "Indian Philosophical Concepts". It remains to be seen whether it is the error of Deccan Herald reporter or result of approach-1 (as mentioned in this blogpost) taken by those behind running this program.
Best Regards,
Rakesh Gupta
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