शून्याकर्षण है - आकर्षण-विकर्षण से मुक्त। सत्ता स्वयं शून्याकर्षण स्वरूप है. सत्तामयता का शून्याकर्षण भी एक नाम है. सत्ता सम-विषम से मुक्त होने के आधार पर इसको शून्याकर्षण नाम दिया।
सत्ता में सम्पूर्ण प्रकृति है. प्रकृति की इकाई का स्वभाव गति (मध्यस्थ) में होना ही शून्याकर्षण है. जैसे - यह धरती शून्याकर्षण में है. ज्ञानावस्था का जागृत मानव भी शून्याकर्षण में है.
इकाई (प्रकृति) की स्वभाव गति सम-विषम के साथ है. सत्ता अपने में मध्यस्थ है, जो सम-विषम से मुक्त है.
प्रश्न: ये पत्थर, मणि, मिट्टी आदि अपनी स्वभाव गति में रहते हैं, तो क्या ये शून्याकर्षण में हैं?
उत्तर: नहीं। पत्थर, मणि, मिट्टी आदि मनुष्येत्तर प्रकृति सम-विषम स्वरूप में क्रियारत रहते हैं. उनके सम-विषम क्रियाकलाप (संगठन-विघटन, सारक-मारक, अक्रूर-क्रूर) को हम स्वभाव गति मान लेते हैं. मनुष्येत्तर प्रकृति की हर वस्तु सम-विषम विधि से स्वभाव गति में है. मनुष्य ने भी सम-विषम विधि से स्वभाव गति में होने का प्रयास किया, पर अभी तक सफल नहीं हो पाया। इसीलिये मानव की स्वभाव गति (धीरता, वीरता, उदारता, दया, कृपा, करुणा) को पहचानने की आवश्यकता आयी.
प्रकृति में सम और विषम दोनो मध्यस्थ होना चाहते हैं, इसी की परिणिति है - चारों अवस्थाओं का प्रकटन।
आपको सम, विषम और मध्यस्थ के बारे में बताया। ज्ञान मध्यस्थ है, सम-विषम से मुक्त है. सम-विषम कार्यकलाप होता है. सम-विषम की गणना होती है. ज्ञान की गणना नहीं होती। मानव ज्ञान सम्पन्न होने के पहले बात करेगा या ज्ञान सम्पन्न होने के बाद बात करेगा? मानव ज्ञान सम्पन्न होने के बाद बात करे, वही शोभनीय होगा। ज्ञान विधि से बात करने के लिये मध्यस्थ को पकड़ना होगा, जो सम-विषम से मुक्त है.
प्रश्न: ज्ञान विधि से मानव में मध्यस्थता को (मानवीयता पूर्ण आचरण स्वरूप में) जो आपने स्वयं जीने में प्रमाणित करके समझाया, वह स्पष्ट है. उससे पहले मनुष्येत्तर प्रकृति में आपने कहा, सम-विषम विधि से ही सारा कार्यकलाप है. इसके साथ आपने हमें यह भी बताया है कि एक परमाणु से लेकर, अणु, अणु रचित रचनायें, रसायन, जीव आदि सभी व्यवस्था के ही क्रम में हैं. साथ ही यह भी बताया है कि व्यवस्था मध्यस्थता का स्वरूप है. फिर आप यह कैसे कह रहे हैं कि उनका कार्यकलाप सम-विषम ही है?
उत्तर: मनुष्येत्तर प्रकृति व्यवस्था में है, लेकिन उसका कार्यकलाप सम-विषम है. कार्यकलाप सम-विषम ही होता है. ज्ञान मध्यस्थ है. मानव को अध्ययन पूर्वक ज्ञान में अनुभव होता है. ज्ञान-संपन्न मानव का कार्य-कलाप सम-विषम ही होता है, पर वह मध्यस्थ क्रिया (आत्मा) द्वारा नियंत्रित होता है.
ज्ञान और विज्ञान दोनों एक स्तर के नहीं हैं. ज्ञान कारण स्तर पर है, विज्ञान कार्य स्तर पर है. अभी आप लोगों के साथ व्याधा है कि आप ज्ञान और विज्ञान को एक ही स्तर पर लाकर देखना चाहते हो.
यह जो बताया, इसको अध्ययन करने की आवश्यकता है. इसके बारे में केवल बात-चीत करना भर पर्याप्त नहीं है.
- श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (मई २०१४, अछोटी)