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Sunday, March 23, 2014

कार्य ज्ञान और ज्ञान

"इकाइयों की परस्परता में जो खाली  स्थली है - वह स्वयं सत्ता है.  आँखों में यह सत्ता खाली स्थली जैसी प्रतिबिम्बित होती है.  यह खाली नहीं है, ऊर्जा है.  यह ऊर्जा सब में पारगामी है - पत्थर में, मिट्टी में, पानी में... एक परमाणु अंश से लेकर धरती में - सब में पारगामी है.  इकाइयों में इसके पारगामी होने की गवाही है, उनमें ऊर्जा सम्पन्नता।  मानव में यह ऊर्जा सम्पन्नता ज्ञान के रूप में है.  मानव में 'कार्य ज्ञान' होता है, यह बात परंपरा में आ चुकी है.   कार्य ज्ञान के मूल में ज्ञान है, वह सत्ता है.  जिस तरह 'कार्य ऊर्जा' और 'साम्य ऊर्जा' भौतिक संसार में है, उसी तरह 'कार्य ज्ञान' और 'ज्ञान' मानव में है.  'रहने' के रूप में कार्य ज्ञान, 'होने' के रूप में ज्ञान।  'रहने' के रूप में कार्य ऊर्जा, 'होने' के रूप में साम्य ऊर्जा। 'होने' के रूप में कारण की पहचान है.  'रहने' के रूप में कार्य की पहचान है.  होना और रहना अविभाज्य है." - श्री ए नागराज

1 comment:

Unknown said...

Jivan Dhanya Hogaya Baba Aapki Kripa se