ANNOUNCEMENTS



Thursday, November 22, 2012

समाधान प्रमाणित हो जाना शान्ति है।

चुप हो जाना शान्ति नहीं है।  समाधान प्रमाणित हो जाना शान्ति है।  दुःख है - हल्ला-गुल्ला मचाना, गुहार करना।   अब क्या किया जाए?  समाधान के लिए पूरा का पूरा व्यवस्था दिया जाए।  वह अध्ययन विधि से ही होगा।  अध्ययन अनुभवमूलक विधि और अनुभवगामी पद्दति के संयोग से ही होगा।  अनुभवमूलक विधि न हो और अनुभवगामी पद्दति निकल जाए - यह हो नहीं सकता।  अनुभवमूलक विधि प्रमाण के साथ ही होगी।  अनुभव ही प्रमाण परम है।  प्रमाण परम विधि से यदि हम अध्ययन करायें तो वह अनुभव तक पहुँचता ही है।

साक्षात्कार पूरा होते तक अध्ययन है।  साक्षात्कार होता है तो उसके बाद बोध और अनुभव होता ही है।  क्या साक्षात्कार होना है?  सह-अस्तित्व स्वरूपी अस्तित्व साक्षात्कार होना है।  जीवन जागृति रुपी महिमा सहित साक्षात्कार होना है।  ये दो बिन्दुएँ साक्षात्कार होने पर अनुभव होता है।  इन दो बिन्दुओं को साक्षात्कार करने में किसको क्या तकलीफ है?  मैंने इस सार को पाने के लिए एक परमाणु अंश से लेकर धरती जैसी रचना तक, एक प्राणकोषा से लेकर अनंत रचनाओं तक, दो अंश के परमाणु से लेकर गठनपूर्ण परमाणु तक सब कुछ साक्षात्कार किया।  इतनी चीजों का साक्षात्कार किये बिना मैं अनुभव पूर्ण हुआ, यह स्वीकार ही नहीं सकता था।  अनुभव पूर्ण होना स्वीकारने से मैं इस जगह पहुँच गया कि इसको अनुभवगामी पद्धति से लोकव्यापीकरण करना सुगम है।  तब इस कार्यक्रम को शुरू किया।

- श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी 2007, अमरकंटक) 

No comments: