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Friday, December 6, 2019

मानसिकता

मानव संवेदनाओं से अपने को व्यक्त करता है.

मानव संवेदनाओं द्वारा अपनी मानसिकता को व्यक्त करता है.

संवेदनाओं को व्यक्त करते समय मानव (भ्रमवश) अपनी मानसिकता में अनिश्चयता को व्यक्त कर सकता है.

मानसिकता या मन जीवन का अभिन्न अंग है.  मन के बाद वृत्ति, वृत्ति के बाद चित्त, चित्त के बाद बुद्धि, बुद्धि के बाद आत्मा - इन पाँचों के संयुक्त रूप में जीवन है. 

मानव में संवेदनाओं द्वारा जीवन अपने स्वरूप को व्यक्त करता है.

जीवन का अपने स्वरूप को व्यक्त करने का और कोई तरीका नहीं है.

सुखी होने के लिए मानव जो कुछ भी करता है उस सब के मूल में मन में आस्वादन है.

मानव मन से काम करता है - इस बारे में मानवजाति आश्वस्त है या नहीं?  अधिकांश लोग मन होता है, इसको मानते ही होंगे.  कुछ लोग नहीं भी मानते होंगे.  मन के होने को मानते हैं इसीलिये मनोविज्ञान को पढ़ते-पढ़ाते हैं.  फ्रायड ने मनोविज्ञान को लगभग १०० वर्ष पहले लिखा.  भारतीय विचार में मनु के समय से मन को पहचाना गया.  "मन एव मनुष्याणाम बन्धमोक्ष्यो: कारणं" या मन ही बंधन और मोक्ष का कारण है - यह गीता में लिखा है.  "निर्भ्रमता पूर्वक मोक्ष और भ्रमवश बंधन है" - यह प्रतिपादित करते हुए वे भ्रम-निर्भ्रम की भाषा लाये।  फिर भ्रम-मुक्ति के लिए वे भक्ति-विरक्ति मार्ग बताए, वह रहस्य में फंस गया.  "भ्रम मुक्ति ही मोक्ष है" - यह हमने मध्यस्थ दर्शन में भी प्रतिपादित किया है.  भ्रम-मुक्ति के लिए हम समझदारी के पास ले गए, उसके लिए अध्ययन का मार्ग बताया.  समझदारी का स्वरूप है - मानव चेतना, देव चेतना और दिव्य चेतना.  नासमझी का स्वरूप है - जीव चेतना.  नासमझी है - सकल अपराध को वैध मानना.  समझदारी है - वैध को वैध मानना, अवैध को अवैध मानना.  इसी से सही और गलत का demarcation  होता है.  वैध को वैध मानने का मतलब है, वैध आचरण में आना.  आचरण में आने का स्वरूप है - समाधान-समृद्धि.  इस क्रम में हम स्थिर हो पाते हैं तो उसकी परम्परा बनाने का काम हम शुरू करते हैं.  यदि यह क्रम हममे स्थिर नहीं है तो इसकी परम्परा नहीं बनेगी.

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (दिसम्बर २००९, अमरकंटक)

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