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Monday, July 22, 2019

रहस्य मुक्ति



प्रश्न:  अकस्मात् घटनाओं के रूप में कई लोग ऐसा सत्यापन किये हैं कि उन्होंने शरीर से अलग कुछ होता है, उसको देखा है.  उसको भूत-प्रेत-आत्मा आदि नाम लेकर कुछ बताते हैं.  अपने आप के शरीर से भिन्न होने की पहचान कुछ तंत्र/अभ्यास विधियों में कराई जाती है - आप के अनुसार वह क्या है?  साक्षात्कार है या कोरी कल्पना है?

उत्तर: साक्षात्कार है - यदि यह आगे पूरी समझ से जुड़ता है.  यदि आगे समझ से नहीं जुड़ता है तो रहस्य है, कोरी कल्पना है.

प्रश्न:  आदि शंकराचार्य के बारे में कहते हैं वे अपने शरीर को एक अवधि तक छोड़ दिए फिर वापस आ गए.  इसको आप क्या कहेंगे?  

उत्तर: शरीर से अलग हो जाना फिर वापस जीने लगना एक बात है, पर वह जीवन के स्वरूप का अध्ययन हो जाना नहीं है.  शंकराचार्य ये जो किये इससे जीवन और शरीर अलग-अलग वास्तविकताएं हैं - यह कहाँ सिद्ध कर पाए?  जीवन को जानते ही नहीं रहे.  वो जितना किये उसको बताया जाए, उसको अपने मन मुताबिक़ रबड़ जैसे खींचा न जाए!

उस परंपरा में शरीर से अलग "जीव" होता है - बताया गया है.  "जीव" के ह्रदय में "आत्मा" रहता है, जो ब्रह्म का अंश है - ऐसा बताया है.  जीव-कल्याण के लिए आत्म-ज्ञान चाहिए - ऐसा बताये.  आत्म-ज्ञान की महिमा वश ऐसे घटना होता है - ऐसा मान लिए.  अब आप उसका इस दर्शन के प्रस्ताव के साथ घोटाला करना चाहते हैं!  उससे कुछ निकलना नहीं है.

आदि शंकराचार्य के समय तक जीवन की कोई अवधारणा नहीं है.  अध्यात्मवाद में "जीव" और "आत्मा" की अवधारणा है.  भौतिकवाद में उस सब को नहीं मानते हैं, उसको निरर्थक कहते हैं.  अध्यात्मवादी भौतिकवादियों को नास्तिक कहते हैं.

प्रश्न:  तो आदि शंकराचार्य के साथ यह जो घटा, उसको "साक्षात्कार" माना जाए या नहीं?

उत्तर: किसका साक्षात्कार माने?  घटना तो अस्तित्व में होता ही रहता है.  शंकराचार्य के पहले भी होता रहा, किन्तु वे "जीवन" को कहाँ पहचाने?

प्रश्न:  मान लिया वे पूरे को नहीं समझ पाए, पर आंशिक तो...

उत्तर: तो आप कह रहे हैं, वे "आंशिक" समझ गए!  यह अतिवाद है.  समझे हैं, या नहीं समझे हैं - यही होता है.  वे क्या "आंशिक" समझे, आप वही बता दो!  यहीं हम अतिवाद करते हैं. 

पहले जो बताया गया है, उसमे "जीव" का जिक्र है, "जीव" के ह्रदय में "आत्मा" का जिक्र है.  यह मैं भी पढ़ा हूँ.  भौतिकवादियों को इससे लेन-देन नहीं है, उनको केवल शरीर से मतलब है.  भौतिकवादियों ने प्रतिपादित किया - "रचना के आधार पर चेतना निष्पन्न होता है"  अध्यात्मवादियों ने ब्रह्म को चेतना बताया, उसी को ज्ञान बताया, उसी से पदार्थ पैदा हुआ - यह बताया.  ये दोनों श्वेत-पत्र सिद्ध हो गया है.  इन दोनों को अजमाने पर पता चला कि ये दोनों झूठ बोल रहे हैं.  श्वेत-पत्र का मतलब है - झूठ को सच बताना. 

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २००८, अमरकंटक)

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