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Monday, December 24, 2018

अनुभव पूरा होता है, उसका अभिव्यक्ति क्रम से होता है.




अनुभव पूरा होता है, उसका अभिव्यक्ति क्रम से होता है.  जीव चेतना से मानव चेतना में परिवर्तन के लिए अनुभव एक साथ ही होता है.  वह क्रम से मानव चेतना, देव चेतना, दिव्य चेतना के रूप में प्रमाणित होता है.  अनुभव होने पर दृष्टा पद में हो गए.  मैं समझ गया हूँ - इस जगह में रहते हैं.  समझा हुए को वितरित करना मानव परंपरा में ही होगा.  इसमें पहले मानव चेतना ही वितरित होगी, फिर देव चेतना, फिर दिव्य चेतना.  ऐसा क्रम बना है.

अनुभव के बिना मानव चेतना आएगा नहीं.  पूरे धरती पर मानव चेतना के प्रमाणित होने के स्वरूप में कम से कम ५% लोग अनुभव संपन्न रहेंगे ही, भले ही बाकी लोग उनका अनुकरण करते रहे.  अनुभव सम्पन्नता के साथ देव चेतना और दिव्य चेतना में प्रमाणित होने का अधिकार बना ही रहता है.  परिस्थितियाँ जैसे-जैसे बनती जाती हैं, वैसे-वैसे उसका प्रकटन होता जाता है.

दिव्यचेतना के धरती पर प्रमाणित होने का अर्थ है - सभी लोग मानव चेतना और देव चेतना में जी रहे हैं.  तभी दिव्य चेतना का वैभव है.  दिव्य चेतना के आने के बाद धरती पर कोई प्रश्न ही नहीं है!  उसके बाद मानव इस धरती को अरबों-खरबों वर्षों तक सुरक्षित रख सकता है.  यह धरती अपने में शून्याकर्षण में है.  यह ख़त्म होने वाला नहीं है.  मानव यदि बर्बाद न करे तो यह धरती सदा के लिए है.

- श्रद्धेय श्री ए नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २००८, अमरकंटक)

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