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Wednesday, December 12, 2018

परिवार की बात विगत के शास्त्रों में नहीं है.



बोलना कोई जीना नहीं है.  जीने में समाधान ही होगा, समृद्धि ही होगा - और इसके अलावा कुछ भी नहीं होगा.  बोलना एक 'सूचना' है.  'जीना' प्रमाण है.  जीने में समाधान-समृद्धि ही प्रमाण है - और कुछ प्रमाण होता नहीं है.  आप कहीं से भी ले आओ - मानव लक्ष्य इन दोनों में ही ध्रुवीकृत होता है.  परिवार का डिजाईन समाधान-समृद्धि पूर्वक जीने से निकलता है.

"परिवार" शब्द मानव परंपरा में है किन्तु शास्त्रों में नहीं है.  शास्त्रों में परिवार की बात करते तो उसका डिजाईन बताना पड़ता!  मध्यस्थ दर्शन के पहले जो कुछ भी शास्त्रों में है - उसमें परिवार का कोई डिजाईन नहीं है.  परिवार का डिजाईन बताने की अर्हता विगत के शास्त्रकारों के पास नहीं है.  वहां "व्यक्ति" से सीधे "समाज" की बात की गयी है.  यहाँ (मध्यस्थ दर्शन) के अलावा परिवार के बारे में कोई चूं नहीं किया है!  परिवार का लिंक ही छूट गया - इसलिए दूरी बनी रही.  सहअस्तित्व विधि को छोड़ करके इस लिंक को कोई नहीं जोड़ सकता.  व्यक्ति और समाज के बीच परिवार एक सेतु है.

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)

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