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Saturday, November 24, 2018

हर अगली अवस्था का भ्रूण उसकी पिछली अवस्था में बनता है


पदार्थावस्था में जितने प्रजाति के परमाणु होना था, उनका प्रकटन होने के बाद उसमे यौगिक क्रिया का भ्रूण बना.  भ्रूण बनने का अर्थ है - पदार्थावस्था में प्राणावस्था को प्रकट करने की आवश्यकता बन गयी.  प्राणावस्था प्रकट होने की पृष्ठभूमि को हम "भ्रूण" कह रहे हैं.

प्रश्न: भ्रूण वस्तु के रूप में क्या है?

उत्तर: जो प्रकट हो सकता है, उसको भ्रूण कहते हैं.  जैसे- आम की डाल पर उसके फूल लगने से पहले उसका भ्रूण उस डाल में बनता है.

इसी तरह सभी स्थितियों में पर-रूप का भ्रूण पूर्व-रूप में निहित रहता है.  जैसे - पानी एक यौगिक है, जो एक जलने वाले और एक जलाने वाले वस्तु के योग से प्रकट हुआ है.  इन दोनों परमाणुओं में एक दूसरे से मिलने की आवश्यकता जो बना, वही भ्रूण है.

यह समझ में आने पर आदमी का अहंकार काफी शांत हो जाता है.  नहीं तो आदमी अपनी शेखी बघारने में लगा रहता है.  इस बात को गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है.

मिलन को योग संज्ञा है.  एक दूसरे से मिलने के बाद "ऐक्य" या "सहवास" स्वरूप में हो जाते हैं.  एक दूसरे से मिलने के बाद अलग-अलग स्वरूप पता नहीं चले उसे ऐक्य कहा.  जैसे - अपना-अपना आचरण छोड़ कर जलने वाला और जलाने वाला वस्तु एक तीसरे आचरण (प्यास बुझाने वाला) को अपना लिए, और जल का प्रकटन हुआ.  यह एक सहज नियंत्रण का स्वरूप है.  यह यदि समझ में आता है तो आदमी में अभी जो प्रकृति का नियंत्रण करने का शेखचिल्ली है वह समाप्त हो जाता है. 

प्रकृति में नियति विधि से "होना" और "रहना" का प्रकटन है.  होने और रहने के स्वरूप में यह सम्पूर्ण सहअस्तित्व है.  हर वस्तु होने और रहने के स्वरूप में है.  होना चार अवस्थाओं के स्वरूप में है.  रहना - त्व सहित व्यवस्था और समग्र व्यवस्था में भागीदारी.  इसमें मानव की सबसे विडंबनात्मक स्थिति है.  अभी तक मानव जीवचेतना में जीते हुए पशुमानव/राक्षसमानव स्वरूप में जिया है, उससे उठा नहीं है.  कमर सीधा हुआ नहीं है.

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)

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