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Tuesday, November 20, 2018

सहअस्तित्व में योग-संयोग




प्रश्न: एक वृक्ष के सभी बीज अंकुरित नहीं हो जाते, एक जीव की सभी संतानें अपनी पूरी आयु जी नहीं पाती - यह हमको प्रकृति में दिखता है, वैसे ही सभी परमाणु गठनपूर्ण हो कर जीवन पद प्रतिष्ठा में नहीं हो पाते.  यह कैसे होता है?  यह किस नियम से होता है?

उत्तर:  यह योग-संयोग नियम से होता है.  योग-संयोग सहअस्तित्व पूर्वक निश्चित होता है.  सम्पूर्ण योग-संयोग सहअस्तित्व पर निर्भर है. 

मिलन का नाम है योग.  हर वस्तु का अन्य वस्तुओं के साथ मिलन विधि या योग विधि बना ही रहता है.  जैसे - बीज का मिट्टी से मिलन योग है.  पानी से मिलना योग है.  हवा से मिलना योग है.  खाद-गोबर मिलना योग है.  ये सब मिलकरके योग है.  इन सब में से कुछ भी मिलने से रह जाए तो विरोधाभास होता है. 

सहअस्तित्व बने रहने, चारों अवस्थाएं बने रहने के लिए प्रकृति में यह नियंत्रण है.

प्रश्न:  यह नियंत्रण होता कैसे है?  बिना किसी नियंत्रण करने वाले के यह नियंत्रण कैसे हो रहा है?

उत्तर: प्रकृति में नियंत्रण स्वयंस्फूर्त रहता है.  अभी नियंत्रण को हम अपनी हविस के रूप में मानते हैं.  किन्तु सहअस्तित्व (सत्ता में संपृक्त प्रकृति) में जो नियंत्रण है वह चारों अवस्थाओं के बने रहने के अर्थ में है.  यह इसका नियति है.  सहअस्तित्व का नियति इतना है.

प्रश्न: तो इस नियंत्रण के चलते जो बीज अंकुरित नहीं हुआ, या जो शिशु अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गया - क्या उसका शोषण नहीं हुआ?

उत्तर: वहां योग ठीक नहीं हुआ.  यह बिल्कुल स्पष्ट बात है.  कोई भी वस्तु के रहने के लिए योग-संयोग विधि बना है.  जैसे - आप हम यहाँ रह रहे हैं.  इसके साथ यह घर है, हवा है, पानी है, खाना है - यह सब संयोग है.  इन सब के एकत्रित होने से हमारा रहना हो पाता है.  इनमे से कोई भी कम होने पर या तो हम रोगी होते हैं या दुखी होते हैं.  उसी प्रकार हर वस्तु के साथ योग है, संयोग है.  सहअस्तित्व स्वरूपी नियम अपने आप में सिद्ध है.  चारों अवस्थाएं सहअस्तित्व में ही प्रकट हैं.  इन चारों अवस्थाओं का बने रहना सहअस्तित्व का उद्देश्य है.  नियति विधि यही है.  नियति विधि से ही सहअस्तित्व सिद्धांत और योग-संयोग सिद्धांत आता है.

प्रश्न: अस्पतालों में जो भ्रूण-हत्या करते हैं, उसके बारे में आपका क्या मंतव्य है?

उत्तर: यह आदमी का हविस है.  योग हो गया उसको विच्छेद करने का उपाय खोज लिया आदमी ने.  मनुष्य के इस कुकर्म को कुछ लोग सही भी मानते हैं, कुछ गलत भी मानते हैं.

- श्रद्धेय ए नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)

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