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Saturday, May 23, 2009

आज्ञापालन और कृतज्ञता

अध्ययन कराना स्वेच्छा से स्वयं-स्फूर्त होता है। अध्ययन करना भी स्वेच्छा से होता है। इसमें कोई भय-प्रलोभन शामिल नहीं है। इसमें कोई "आज्ञापालन" भी शामिल नहीं है। आज के समय में आज्ञापालन तो कोई नहीं करेगा। आज्ञा का पालन होना ही नहीं है - तो आज्ञा देने का क्या फायदा? हमारे समय तक आज्ञापालन जो होना था, हो गया। समझने के लिए प्रस्ताव है - उससे आप संतुष्ट होते हैं, तो उसको समझने के लिए आपकी झकमारी है, नहीं तो मजामारी करते रहो! जिसकी झकमारी है वह समझेगा ही, जियेगा ही, करेगा ही।

आज के समय में कृतज्ञता तो मूल्यों के रूप में होगा। लेकिन आज्ञापालन होना अब बहुत मुश्किल है। यदि उपकृत होते हैं, तो कृतज्ञता सर्वाधिक लोगों में है। प्रचलित-विज्ञान विधि से चलने पर कृतज्ञता की बात ही नहीं आती। इसके विपरीत कृतघ्नता होती है। जो सिखाता है, उसी के प्रति विरोध और शत्रुता की बात आती है। अभी आप स्कूल-कॉलेज में अध्यापकों पर विद्यार्थियों द्वारा हमला करने, गोली से मारने तक की बात सुनते ही हैं।

आज हमारे देश में लाभोंमादी, भोगोंमादी, कामोंमादी शिक्षा के लिए सभी तत्पर हैं। उसको चाहते हैं, तभी ऐसा है। ऐसे में हम यह सह-अस्तित्व-वादी प्रस्ताव को रख रहे हैं। इसमें से कुछ पुण्यशीलों को यह अपील हो रहा है। प्रस्ताव आने पर लोगों का ध्यान धीरे-धीरे इसकी तरफ़ जा रहा है। आदमी में सहीपन की अपेक्षा है - तभी ऐसा है।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (दिसम्बर २००८, अमरकंटक)

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