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Wednesday, July 14, 2021

जीवन मूल्य

प्रश्न: सुख-शान्ति-संतोष-आनंद को "जीवन मूल्य" कहने का क्या आशय है?


उत्तर: मन और वृत्ति के मध्य में सुख होता है - या मन और वृत्ति के संयोजन में सुख की बात होती है.  वृत्ति और चित्त के संयोजन में शान्ति की बात होती है.  चित्त और बुद्धि के संयोजन में संतोष की बात होती है.  बुद्धि और आत्मा के संयोजन में आनंद की बात होती है.  अनुभव मूलक विधि से यह संयोजन होता है.  मन वृत्ति में अनुभव किया - जिससे सुख हुआ.  वृत्ति चित्त में अनुभव किया - जिससे शान्ति हुआ.  चित्त बुद्धि में अनुभव किया - जिससे संतोष हुआ.  बुद्धि आत्मा में अनुभव किया - जिससे आनंद हुआ.  इस तरह जीवन में जीवन का अनुभव करने से सुख-शांति-संतोष-आनंद होता है -  इसी लिए इनको "जीवन मूल्य" कहा है.


आत्मा सहअस्तित्व में अनुभव करने को परमानंद कहा है.  परमानंद की ही अभिव्यक्ति है - सुख, शान्ति, संतोष और आनंद.  परमानंद व्यक्त होता नहीं है, पर सुख-शान्ति-संतोष-आनंद - ये चारों व्यव्हार में व्यक्त हो जाते हैं.


सुख व्यवहार में व्यक्त होता है - समाधान स्वरूप में (व्यक्ति स्तर पर).

शान्ति व्यव्हार में व्यक्त होता है - समृद्धि स्वरूप में (परिवार स्तर पर).

संतोष व्यव्हार में व्यक्त होता है - अभय स्वरूप में (समाज स्तर पर)

आनंद व्यव्हार में व्यक्त होता है - परम्परा में प्रमाणित करने के स्वरूप में, दूसरे को बोध कराने के स्वरूप में (व्यवस्था स्तर पर) 


सहअस्तित्व स्वरूपी सत्य के अलावा किसी बात का बोध न होता है, न करा सकते हैं.  जीवन का ढांचा ही ऐसा बना है.


- श्रद्धेय बाबा नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २००८, अमरकंटक)

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