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Monday, July 4, 2022

सत्ता और ज्ञान

सहअस्तित्व में मानव समाहित है.  सहअस्तित्व से चारों अवस्थाओं में संतुलन भी इंगित है, सत्ता में सम्पृक्त्ता भी इंगित है.  व्यव्हार रूप में चारों अवस्थाओं के साथ संतुलित रूप में जीना और अनुभव में सम्पृक्त्ता/पारगामीयता का ज्ञान होना.  पारगामीयता के आधार पर ही सहअस्तित्व दर्शन ज्ञान, जीवन ज्ञान और मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान है.  व्यापक वस्तु के प्रतिरूप का नाम है ज्ञान.  व्यापक वस्तु को अभिव्यक्त करना, संप्रेषित करना, आचरण में लाना का नाम ज्ञान है.  ज्ञान का प्रमाण केवल मानव है.  व्यापक वस्तु ही मानव द्वारा ज्ञान के नाम से प्रकाशित होता है.

मानव में ऊर्जा सम्पन्नता ज्ञान है.  मानव में जो कुछ भी ऊर्जा है, उसका नाम है 'ज्ञान'.  चार विषयों का ज्ञान, पांच संवेदनाओं का ज्ञान, तीन एषणाओं का ज्ञान, उपकार का ज्ञान.  चार विषयों और पांच संवेदनाओं के ज्ञान से शरीर संवेदनाओं की सीमा में जीना बनता है.  जिसको जीव चेतना नाम है.  तीन एषणाओं और उपकार का ज्ञान होने पर विशालतम स्वरूप में जीना बनता है.  जिसको मानव चेतना, देव चेतना, दिव्य चेतना नाम है.  जिस सीमा में जीना है, जियो!  हम तो आग्रह नहीं करेंगे, आप ऐसे ही जियो.  

ज्ञान के बिना कोई मानव मिलेगा नहीं.  ज्ञान को हम संकीर्ण बनाते हैं तो दुखी होते हैं, विशाल बनाते हैं तो सुखी होते हैं.  

सत्ता को समझने के लिए मनुष्य में जो ज्ञान है, वहां से शुरू करना होगा.  ज्ञान को छोड़ के सत्ता को समझना किसी से होगा नहीं, चाहे कुछ भी कर लो!  ज्ञान को स्वयं में पहचानना ही स्वनिरीक्षण है.  स्वनिरीक्षण विधि से हम निष्कर्ष पर पहुंचेंगे, और किसी विधि से नहीं.  स्वनिरीक्षण पर ध्यान नहीं जाना ही fallacy है.  चार विषय और पांच संवेदनाएं पर-सापेक्ष हैं.  जीवन के लिए शरीर "पर" है.  शरीर की निवृत्ति होती है.  जीवन शरीर को चलाता है, छोड़ देता है.   चार विषय और पांच संवेदनाएं पर-सापेक्ष होने के कारण इनमे स्वनिरीक्षण हो नहीं सकता.  स्वनिरीक्षण मानवीय और अतिमानवीय विषय (तीन एषणा और उपकार) की सीमा में ही संभव है.  स्वनिरीक्षण होने पर पता चलता है, ज्ञान जीवन का है.  सहअस्तित्व ज्ञान के बिना जीवन ज्ञान होता नहीं है.  अभी तक तो हुआ नहीं!  सारा सिर कूट लिया, साधना कर लिया, यज्ञ कर लिया, तप कर लिया, योग कर लिया - क्या नहीं किया!  चारों अवस्थाओं के साथ सहअस्तित्व को अनुभव करना = सहअस्तित्व ज्ञान होना.  

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २०१०, अमरकंटक) 

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