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Sunday, November 21, 2021

समझदार होने के प्रति ईमानदारी


 


समझदारी के प्रस्ताव को समझ के फिर जाँचना होता है.  बिना समझे जाँचने का कोई मतलब नहीं निकलता.  विगत की विचारधाराओं को जांचने से कुछ निकलेगा नहीं.  किसी भी विधा से दौड़ के आओ उनसे अपराध ही निकलना है.  राज्य विधा से अपराध, धर्म विधा से विरोध, शिक्षा विधा से अपराध, व्यापार विधा से अपराध ही निकलता है.  अपराधिक शिक्षा, अपराधिक राज्य, अपराधिक व्यापार, अपराधिक धर्म, अपराधिक व्यवस्था - इतना ही है.  आदमी के अभी अपराध से बचने का जगह कहाँ है, आप बताओ?  इतना सब होने के बावजूद, इन सबसे छूट के समझदारी पूर्वक जीने का एक प्रस्ताव है.  समाधानित व्यक्ति, समाधान-समृद्धि संपन्न परिवार, समाधान समृद्धि अभय संपन्न समाज, समाधान समृद्धि अभय सहअस्तित्व प्रमाण परम्परा स्वरूपी व्यवस्था.  सुधरा हुआ का स्वरूप इतना ही है. आपकी जरूरत होगी तो इसको समझना आपकी झकमारी है.  इसमें किसी दूसरे का कोई दोष नहीं है.


 इससे अधिक की चाहत मानव के पास नहीं है.  यह चाहिए या नहीं, आप देख लो!  इसके अलावा जो अपराधिक चाहतें हैं, मानव में - उनका प्रभाव समझदारी के आगे पहले ही निरस्त हो जाता है.  जैसे अँधेरी खोली में दिया जलाने से तत्काल प्रकाश हो जाता है, यह उसी प्रकार है.  करोड़ों वर्षों से अन्धकार से भरी खोली क्यों न हो, एक माचिस की तीली से सारा अन्धकार ख़तम!  मानव समझदार होने के प्रति कितना ईमानदारी से संलग्न हो सकता है, उतना ही इसमें देरी है.


- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००७, अमरकंटक)

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