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Sunday, October 3, 2021

निरंतरता अनुभव के साथ ही होगा


 

मानव शरीर चलाते हुए जीवन में कम से कम आशा, विचार, इच्छा या साढ़े चार क्रियाएं कार्यरत रहता है.  शरीर छोड़ने के बाद भी ऐसे जीवन की साढ़े चार क्रियाएं काम करता रहता है.  उसके बाद यदि उत्थान होता है तो दस क्रियाओं का क्रियाशील होना होता है.  जीवन के ये दो ही स्टेशन हैं - भ्रम और जाग्रति - उसके बीच में कुछ नहीं है.  शरीर यात्रा में जो आंशिक समझ में आया उसकी निरंतरता नहीं बनती.  निरंतरता अनुभव के साथ ही होगा.  


अनुभव संपन्न जीवन में शरीर छोड़ने के बाद भी अनुभव बना ही रहता है.  भ्रमित जीवन शरीर छोड़ने के बाद भी भ्रमित ही रहता है.  


प्रश्न: अनुभव संपन्न जीवन जब नयी शरीर यात्रा शुरू करता है, तब क्या होता है?


उत्तर: तब यदि जाग्रति की परम्परा होगी तो ऐसे जीवन को जल्दी समझ में आएगा, मेरे अनुसार.  यदि जाग्रति की परम्परा नहीं हो ऐसे जीवन को पुनः अनुसन्धान ही करना होगा.  यदि जाग्रति की परम्परा नहीं है तो अनुसन्धान पूर्वक उसको परम्परा में स्थापित करने का प्रवृत्ति बीज रूप में जीवन में रहता ही है.  जाग्रति की परम्परा होने के बाद माँ के गर्भ से ही, फिर जन्म से ही जीवन को ज्ञान का पोषण मिलना शुरू हो जाता है.  ऐसी स्थिति को हम पाना चाह रहे हैं.  इसी को हम सर्वशुभ कहते हैं.


- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (दिसम्बर २००८, अमरकंटक)

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