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Sunday, August 18, 2019

छिद्रान्वेषण के स्थान पर सत्यान्वेषण


मैं किसी से भी मिलता हूँ तो उससे मुझे कुछ न कुछ प्रेरणा तो मिलता ही है.  किसी भी व्यक्ति से मिलना वृथा तो गया ही नहीं.  जिसको मैं डांटता भी हूँ उससे भी कुछ न कुछ प्रेरणा मुझे मिलता ही है.  जिससे प्यार करता हूँ उससे भी मुझे प्रेरणा मिलती है.  इससे ज्यादा क्या बयान करूँ?  लोगों में जो अच्छी बात है छान कर मैं उसको स्वीकारता हूँ.  अभी का लोगों का अभ्यास है - सामने वाले में एक खराब बात मिली तो उसके सब कुछ पर डामर पोत देते हैं!  सामने आदमी का १०० में से ९९ ठीक है, एक छेद मिल गया तो उसके पूरे पर डामर पोत दिया!  उसको पूरा नकार दिया.  ऐसा करके ही तो आदमी जात दरिद्र हुआ है.  आदमी ५१% सही है, उससे आगे क्यों नहीं बढ़ा अभी तक?  एक दूसरे के काम में छेद देखने से. 

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००५, अमरकंटक)

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