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Wednesday, March 21, 2018

प्रबोधन क्यों और कैसे - भाग ३

प्रबोधन की आवश्यकता, सार्थकता, प्रयोजन आपको स्वीकार होता है या नहीं?  मानव चेतना के लोकव्यापीकरण के लिए, मानवीयता प्रमाणित होने के लिए, मानवीय संविधान प्रभावित होने के लिए, मानवीयता पूर्ण आचरण हर मानव में प्रमाणित होने के लिए, हर मानव के व्यवस्था के प्रति स्पष्ट रहने के लिए प्रबोधन की आवश्यकता है. इसमें अनुभवगामी पद्दति से अध्ययन और अनुभवमूलक विधि से प्रबोधन का प्रावधान है.  यह निर्विवाद कार्यक्रम है.  इसको पूरा समझने के बाद, जीने के बाद यदि इसमें कोई कमी हो तो पुनः शोध करने की सोचा जा सकता है.  अभी तक तो यह पूरा पड़ता दिखता है.

दिव्य मानव परम्परा में सहअस्तित्व प्रमाण सुलभ हो जाता है.  देवमानव परंपरा में स्वाभाविक रूप में सर्वतोमुखी समाधान प्रमाण सर्वसुलभ हो जाता है.  वर्तमान में हम मानव और देवमानव पद की स्पष्टता पर जोर दे रहे हैं, जिससे मानव कम से कम मानव चेतना स्वरूप में प्रमाणित हो सकता है.

मानव चेतना में हर व्यक्ति को सुखी होना है.  मानव चेतना में क्लेश का कोई नामोनिशान नहीं है.  ठोकबजाऊ बात इतना ही है.  इसको हम और बल दे के, अपनी साहसिकता को नियोजित करके, संसार के साथ उपकार कार्य में लग गए.


प्रबोधन का लक्ष्य है - जिसको प्रबोधित कर रहे हैं, उसको समझ में आना चाहिए. 

प्रबोधन कैसे का उत्तर इस प्रकार है: -

प्रबोधन के लिए भाषा चाहिए.  कौन भाषा प्रयोग करेगा?  इसका उत्तर है - समझदार व्यक्ति.  अनुभवमूलक विधि से जो व्यक्त होता है वही समझदार है.  अनुभवगामी पद्दति से अध्ययन और अनुभव मूलक विधि से प्रमाण. 

भाषा में जो कह रहे हैं वह जिस वस्तु का नाम है वह वस्तु भास-आभास हो जाए, प्रतीत हो जाए, बोध हो जाए.

भाषा-भाव-मुद्रा (मूल्य या वस्तु को इंगित करने के लिए) -भंगिमा-अंगहार (body language) सहित हम प्रबोधन करते हैं.  भाषा लिखित रूप में रहेगी, चित्र रहेगा समझाने के लिए.  ध्वनि - आवश्यकता अनुसार जोर से या धीरे से बोलने की शिष्टता रहेगी.  सामने व्यक्ति को समझने वाला मानने के भाव से प्रबोधित करने की आवश्यकता है.  अध्ययन के हैडलाइन के नीचे ही सारे कार्यक्रम हैं.  शिविर, चर्चा, परिचर्चा, संवाद, संगोष्ठी - ये सब अध्ययन के ही अंगभूत हैं. 

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)

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