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Monday, November 20, 2017

सूक्ष्म संवेदना



(जागृति पूर्वक) सतर्कता-सजगता विधि से हम सदा-सदा तीन दिशाओं के दृष्टा बने रहते हैं.  जैसे - हम किसी सामने खड़े व्यक्ति को देखते हैं तो वह व्यक्ति कैसा दिख रहा है, वह क्या कर रहा है, और वह क्या सोच रहा है - इन तीनो संवेदनाओं को हम ग्रहण करते हैं.  सामने व्यक्ति क्या सोच रहा है उसको पहचानना भी संवेदना ही है - जिसको "सूक्ष्म संवेदना" नाम दिया.  इसको भी हम शरीर के साथ ही ग्रहण करते हैं. 

विचार जीवन में होते हैं.  जीवन के साथ ही शरीर में संवेदनाएं अनुप्राणित होती हैं.  सूक्ष्म संवेदना (सामने व्यक्ति का विचार) यदि समझ में आता है तो हम सामने व्यक्ति को समझे, अन्यथा हम सामने व्यक्ति को समझे नहीं.  "सोचना" या विचार ही "दिखने" और "करने" के मूल में होता है. 

यदि हम सामने व्यक्ति के विचार को उसके दिखने और उसके करने से मिला पाते हैं तो हम उसको समझे, अन्यथा हम सामने व्यक्ति को समझे नहीं!

इस तरह संवेदना विधि से मनुष्य का मनुष्य से अध्ययन का स्त्रोत बना है.  हर मनुष्य का अध्ययन हर मनुष्य कर सकता है. 

जो दिख रहा है - वह "गणित", जो कर रहा है - वह "गुण", जो है - वह "कारण".  इस तरह कारण-गुण-गणित के संयुक्त स्वरूप में मानव द्वारा हर वस्तु की पहचान और सम्प्रेश्ना होती है.  मानव से जुड़ा यह एक सिद्धांत है.

इसी विधि से मानवों में एक दूसरे के साथ मंगल मैत्री के निर्वाह की आवश्यकता की आपूर्ति है.  मंगल मैत्री आवश्यक है - क्योंकि हमे व्यवस्था में जीना है!  व्यवस्था में जिए बिना मानव का कल्याण नहीं है.  सर्वमानव का कल्याण व्यवस्था में जीने में ही है. 

सर्वमानव के कल्याण (शुभ) का स्वरूप है - समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व प्रमाण.  इसके लिए अखंड समाज सूत्र-व्याख्या, अखंड राष्ट्र सूत्र-व्याख्या, सार्वभौम व्यवस्था सूत्र-व्याख्या - यही शिक्षा की वस्तु है. 

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित - अगस्त २००६, अमरकंटक

1 comment:

Unknown said...

वाह मानव मानव को देखने का स्वरूप.