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Sunday, January 10, 2010

यांत्रिकता भर मनुष्य के "जीने" के लिए पर्याप्त नहीं है.

हम यह तय किये थे :-

(१) हर मनुष्य को अनुभव हो सकता है।
(२) अनुभव का स्वरूप सर्व-मानव के लिए एक समान होगा।
(३) हर मनुष्य में अनुभव या "सुख" की चाहत है।

अब अनुभव के लिए मध्यस्थ-दर्शन में प्रस्तावित है - नियम, नियंत्रण, संतुलन, न्याय, धर्म, और सत्य का अध्ययन। इन ६ मुद्दों के अध्ययन पूर्वक "समझदारी" हासिल होती है। समझदारी पूर्वक "सुख" मनुष्य के अनुभव में आता है।

न्याय अनुभव में आएगा कि नहीं? कि और कुछ आएगा?
समाधान अनुभव में आएगा कि नहीं? कि समस्या आएगा?
सत्य अनुभव में आएगा कि नहीं? कि और कुछ आएगा?
नियम अनुभव में आएगा कि नहीं? कि और कुछ आएगा?
नियंत्रण अनुभव में आएगा कि नहीं? कि और कुछ आएगा?
संतुलन अनुभव में आएगा कि नहीं? कि और कुछ आएगा?

अनुभव मनुष्य के जीने में "सर्वतोमुखी समाधान" स्वरूप में प्रमाणित होता है। अनुभव पूर्वक - मनुष्येत्तर प्रकृति के साथ मनुष्य द्वारा "उत्पादन-कार्य" में नियम-नियंत्रण-संतुलन पूर्वक सामरस्यता प्रमाणित होती है। अनुभव पूर्वक - मनुष्य के साथ मनुष्य के "व्यवहार" में न्याय-धर्म-सत्य पूर्वक सामरस्यता प्रमाणित होती है।

अब आपको यह परीक्षण करना है -

मूल रूप में न्याय एक यांत्रिक-प्रक्रिया है या अनुभव-गम्य है?
मूल रूप में समाधान एक यांत्रिक-प्रक्रिया है या अनुभव-गम्य है?
मूल रूप में सत्य एक यांत्रिक-प्रक्रिया है या अनुभव-गम्य है?
मूल रूप में नियम-नियंत्रण-संतुलन एक यांत्रिक-प्रक्रिया है या अनुभव-गम्य है?

प्रश्न: "यांत्रिक प्रक्रिया" और "अनुभव-गम्य" से आपका क्या आशय है?

यांत्रिकता तर्क या भाषा तक पहुँचती है। अनुभव जीने तक पहुँचता है।

यांत्रिकता का उदाहरण - जीभ का हिलना, कान का सुनना, आँख का देखना, नाक का सूंघना, हाथ से छूना। यह यांत्रिकता हर जीवित आदमी के साथ है।

यांत्रिकता भर मनुष्य के "जीने" के लिए पर्याप्त नहीं है।

अनुभव पूर्वक ही मनुष्य का सही मायनों में "जीना" बनता है। अनुभव पूर्वक जीना - या न्याय, धर्म, सत्य पूर्वक जीना - यांत्रिकता नहीं है।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (दिसम्बर २००९, अमरकंटक)

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