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Friday, July 11, 2008

अध्ययन और साक्षात्कार

अध्ययन में साक्षात्कार के लिए आशा, विचार, इच्छा, और प्रयत्न रहता है। साक्षात्कार हुआ या नहीं, हाथ लगा या नहीं - उसका सत्यापन आप ही करोगे। पाने के लिए जो वस्तु है उसको मैं आपको बोल कर, लिख कर आप के सामने वांग्मय के रूप में प्रस्तुत किया हूँ। वह मेरे लिए भले ही अनुभव हो, पर आपके लिए वह सूचना ही है। वह आपके अनुभव में आने पर ही प्रमाण है।

आप इस प्रस्तुति से पहले तर्क-विधि से संतुष्ट होते हैं। तर्क तात्विकता को छूता है। तात्विकता को पाने के लिए अध्ययन है। अध्ययन विधि से संतुष्ट होने का मतलब है - सहअस्तित्व साक्षात्कार, बोध, और अनुभव होना। फलतः प्रमाण होना। जीने के लिए तत्पर होने पर प्रमाणित होने की आवश्यकता आती है। बिना जिये समझ का प्रमाण नहीं है।

अध्ययन में ध्यान देने की ज़रूरत है। "हमको समझना है" - जब यह वरीयता में आता है, तब ध्यान लगता है। "हमको समझना नहीं है, केवल पढ़ना है" - जब ऐसा रहता है, तब ध्यान नहीं लगता। समझना हर व्यक्ति का अधिकार है।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (जून २००८, बंगलोर)

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