1. अवधारणा = जानना‑मानना‑पहचानना (यही बोध का प्रारूप है)
“जान लिया, मान लिया तथा पहचान चुके हैं। यही अवधारणा है।” Page 22, समाधानात्मक भौतिकवाद
2. अवधारणा = सद्विवेक; सत्य‑बोध के रूप में अवधारणा
“अवधारणा ही सद्विवेक है । सद्विवेक स्वयं में सत्यता की विवेचना है जो स्पष्ट है । मूलतः यही सर्वशुभ एवं मांगल्य है ।
अनुभव की अवधारणा सत्य बोध के रूप में; अवधारणा (सम्यक-बोध) ही सत्य-संकल्प है । यही परावर्तित होकर शुभकर्म, उपासना तथा आचरण में फलित रूप में प्रत्यक्ष है । इसी का परावर्तित मूल्य ही धीरता, वीरता, उदारता, दया, कृपा और करूणा के रूप में प्रत्यक्ष है ।” Page 46, मानव कर्म दर्शन
3. अनुभवगामी अवधारणा = संस्कार; यही बोध का आधार है
“बुद्धि में प्राप्त अनुभवगामी अवधारणाएं (संस्कार) क्रम से विचार व क्रिया में अभिव्यक्ति होती है और क्रिया से प्राप्त विचार पुन: अनुमान सहित अवधारणा (संस्कार) में स्थित होते हैं ।” Page 116, मानव व्यवहार दर्शन
4. अवधारणा = समाधान;
“संबंध का स्वीकृति अथवा अवधारणा अपने स्वरूप में समाधान और उसकी निरंतरता ही है. यह विज्ञान और विवेक सम्मत तर्क विधि से बोध होता है।”Page 110, व्यवहारवादी समाजशास्त्र
5. अवधारणा = सत्य‑बोध का ही रूप
“अवधारणा सत्य‑बोध के रूप में।” Page 46, मानव कर्म दर्शन
6. अवधारणा = हृदयंगम बोध
“हृदयंगम होने का तात्पर्य बोध अवधारणा के रूप में जीवन आश्वस्त होने से है।”Page 87, समाधानात्मक भौतिकवाद
7. अध्ययन विधि में बुद्धि में ‘पुष्टि बोध’ = अवधारणा
“अध्ययन विधि से सहअस्तित्व रूपी सत्य सहज मन में पुष्टि मनन (स्वीकारने के रूप में), वृत्ति में पुष्टि तुलन (गुणात्मक विधि से), चित्त में पुष्टि साक्षात्कार, बुद्धि में पुष्टि बोध संज्ञा है ।”Page 64, मानव व्यवहार दर्शन
8. अवधारणा = अनुगमन/अनुशीलन की प्रवृत्ति; जागृति का आधार
“अवधारणा ही अनुगमन तथा अनुशीलन के लिये प्रवृत्ति है, जो शिष्टता के रूप में प्रकट होती है. जागृति के लिये अवधारणा अनिवार्य है।” Page 45, मानव कर्म दर्शन
9. अवधारणा कैसे?
“विश्राम योग्य अवधारणा मात्र न्यायपूर्ण व्यवहार से, धर्मपूर्ण विचार से तथा सत्य में अनुभूति सहित सम्भव होता है ।”Page 48, मानव व्यवहार दर्शन
11. अनुभव‑सहज बोध = अवधारणा = हृदयंगम
“चैतन्य प्रकृति में आदान-प्रदान होने वाली, पहचानने और निर्वाह करने की संयुक्त संप्रेषणा की स्वीकृति ही बोध के नाम से जानी जाती हैं। इसी को हृदयंगम कहा जाता है और ऐसा बोध ही अवधारणा है।”Page 51, समाधानात्मक भौतिकवाद
12. अवधारणा में तृप्ति बिन्दु प्राप्त होना = अनुभव
जानना‑मानना‑पहचानना की संयुक्त प्रक्रिया में जब तृप्ति‑बिन्दु प्राप्त होता है, वही अनुभव है Page 118, अनुभवात्मक अध्यात्मवाद