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Thursday, July 13, 2023

जिज्ञासा और स्पष्टीकरण - भाग १

 प्रश्न: आपने मानव व्यवहार दर्शन में लिखा है - "बुद्धि में पूर्ण बोध होने के साथ साथ ही आत्मा में पूर्ण अनुभव होना पाया जाता है, फलस्वरूप अनुभव प्रमाणित होना सहज है."  क्या बुद्धि में "अपूर्ण बोध"  और आत्मा में "अपूर्ण अनुभव" भी होता है?

उत्तर:  बोध और अनुभव पूर्ण ही होता है.  बोध और अनुभव अपूर्ण कभी होता ही नहीं है.  

प्रश्न:  मानव व्यव्हार दर्शन में ही एक और जगह आपने लिखा है - "अध्ययन के मूल में चैतन्य का प्रभाव होना अनिवार्य है.  इसी के अनुपात में अपूर्ण बोध, अल्प बोध, सुबोध एवं पूर्ण बोध हैं.  इनके ही प्रभेद से मनुष्य में श्रेणियाँ हैं."

उत्तर: अध्ययन विधि से अवधारणा बनने के क्रम में बुद्धि चित्त का मूल्यांकन करती है कि यह अपूर्ण है या अल्प है.  आत्मा और बुद्धि के साक्षी में ही अध्ययन होता है.  पूरा होने के पहले यह अपूर्ण है, बुद्धि को चित्त में इस अपूर्णता का पता चलता है.  इसी को "अपूर्ण बोध" कहा.  "अल्प बोध" मतलब कुछ ठीक हुआ.  सुबोध के बाद पूर्ण बोध होता है.  

प्रश्न: आपने लिखा है - "जिसका चैतन्य पक्ष जितना जागृत है, उसके पूर्ण होने और प्रमाणित होने की उतनी ही सम्भावना है"  इससे क्या आशय है?

उत्तर: अभी मानव भ्रम में है.  सारा संसार जागृति की ओर ही है.  भ्रम में रहते हुए भी जागृति की कतार में है.  इसमें "चैतन्य पक्ष जितना जागृत है" से आशय है, कितना तीव्रता से जागृति के लिए प्रवृत्त है.  जागृति भौतिक-रासायनिक वस्तु से शुरू होता है, चैतन्य वस्तु तक पहुँचता है.  

अभी सत्यता के लिए लोग जितना प्यासे हैं, पहले नहीं थे.  पहले सत्यता के लिए चर्चाएं आज्ञापालन के रूप में रहा, अनुभव के रूप में नहीं रहा.  विज्ञान ने तर्क को जोड़ा तो अनुभव की आवश्यकता आ गयी.  

प्रश्न:  मानव व्यव्हार दर्शन में एक जगह आपने पशु मानव को अल्प जागृत, राक्षस मानव को अर्ध जागृत, मानव को जागृत, देवमानव दिव्यमानव को पूर्ण जागृत कहा है.  अनुभव दर्शन में मानव को अर्ध जागृत, देव मानव को जागृत और दिव्य मानव को पूर्ण जागृत कहा है.  इसमें से कौनसा ले कर चलें?

उत्तर:  मानव व्यवहार दर्शन में जो आया है, वह सही है.  अनुभव दर्शन में अगले संस्करण में वही आना है.  

अर्ध जागृत से आशय है - भौतिक रासायनिक वस्तुओं के प्रति जागृत।  इसी आधार पर मनाकार को साकार कर पाया।  फिर अनुभव के आधार पर मानव जागृत है.  प्रमाण के आधार पर देवमानव, दिव्यमानव पूर्ण जागृत हैं.  

मानव जागृत ही रहता है, पर मानव पद में प्रमाण पूरा नहीं होता है.  मानव में प्रमाण अधूरा होता है, इसीलिये अनुभव दर्शन में मानव को "अर्ध जागृत" मैंने लिखा था.  

अनुभव पूरे अस्तित्व में होता है, उसका दृष्टा पद नाम है.  दृष्टा पद में अनुभव पूरा रहता है, प्रमाण होने पर जागृति होती है.  प्रमाण की पूर्णता जागृति पूर्णता है, जो दिव्य चेतना है.  मानव में इसकी तुलना में प्रमाण अधूरा रहता है, जिसमें तीनों एषणाओं के साथ जीते हुए उपकार करता है.  देवमानव लोकेषणा के साथ उपकार करता है.  दिव्य मानव तीनों एषणाओं से मुक्त उपकार करता है.  

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००७, अमरकंटक)

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