"धरती बीमार हो गयी है" - इसको उजागर करने के लिए न तो विज्ञान संस्थाएं, न शिक्षा संस्थाएं, न राज्य संस्थाएं और न ही व्यापार संस्थाएं आगे आएंगे. हमारे जैसे सामान्य व्यक्ति जिनकी विज्ञान, धर्म, राज्य से बहुत प्रतिबद्धताएं नहीं हैं - ऐसे लोग इसको सोच पाएंगे. ऐसे लोग ज्यादा से ज्यादा गावों में हैं. गावों में कहीं न कहीं श्रमशीलता की आंशिकता है, जो शहरों में नहीं है. इन दोनों बातों को लेकर गाँवों में स्वराज्य की शुरुआत करने का प्रस्ताव किया है. ग्राम स्वराज्य शुरू होने के बाद यह सफल होगा. एक गाँव में पहले इसको सफल बनाया जाए.
प्रश्न: आपसे पहले विनोबा जी के आह्वान पर हम गाँव-गाँव लोगों को समझाने गए, पर समझा नहीं पाए, आखिरकार थक गए, और कहीं रुक गए। क्या आपका ऐसा निर्देश है कि हमको जो आपकी बात स्वीकार हो रही है उसकी सूचना जल्दी से जल्दी हम गाँव-गाँव तक पहुँचाने का अभियान चलाएं?
उत्तर: आप समझा नहीं पाए, यह आप स्वीकार रहे हैं. आपके पास समझाने का वस्तु नहीं रहा - यह आप स्वीकार नहीं रहे हैं. उसकी घोषणा करो - तब यह ठीक बैठता है. आप ऐसा मान रहे हैं पहले भी यही समझ था और आप उसको केवल बता नहीं पाए.
विगत में क्या इसी ज्ञान-विवेक-विज्ञान से संपन्न हो कर ग्राम-स्वराज्य योजना बनाया था? इस बात का परिशीलन होने की आवश्यकता है. उसका निर्णय निकालने की आवश्यकता है. यदि पहले सफल हुआ है तो उस मॉडल का अध्ययन करने की आवश्यकता है.
प्रश्न: जितनी तीव्र गति विनाश की है, उतनी तीव्र गति हमारे प्रयासों में नहीं आ रही है. जल्दी व्यवस्था आये, इसके लिए क्या उपाय है?
उत्तर: जल्दी करने की आतुरता को व्यक्त करने से कुछ हो गया - ऐसा कुछ होता नहीं है. धरती पर चलके ही होगा. धरती पर चलने के लिए समाधान-समृद्धि के साथ जीते हुए पाँचों आयामों के भागीदारी करना है. समाधान के साथ समृद्धि को जोड़ कर जियेंगे, उसके बलबूते पर हम संसार में उपकार कर पाएंगे. दूसरा कुछ कर भी नहीं सकते। इसे हर व्यक्ति, हर परिवार प्रयोग कर सकता है.
परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था योजना के हर कार्यकर्ता को समाधान-समृद्धि संपन्न होने की आवश्यकता है. समाधान-समृद्धि संपन्न हो तो उपकार कर सकते हैं, अन्यथा उपकार नहीं कर सकते. समाधान-समृद्धि पूर्वक जिए बिना कोई उपकार करने का कहता है तो वह झूठ हुआ. इसको छोड़ के धर्म विधि से शासन ही हुआ, राज्य विधि से शासन ही हुआ, और व्यापार विधि से शोषण ही हुआ. अभी शासन करने के लिए राज्य तीन भंवर अपनाये हुए हैं - द्रोह-विद्रोह-शोषण-युद्ध, छल-कपट-दम्भ-पाखण्ड, साम-दाम-दंड-भेद. इन तरीकों को अपना कर हम समाधान को कभी नहीं ला पाएंगे.
हज़ार आदमी गलत हों, उनमे से एक आदमी सही बात को अपनाता है तो उसको गलत साबित करने का अधिकार हज़ार आदमियों में भी नहीं होता है. इसको प्रयोग करके देखा जा सकता है. सहीपन को कोई एक बार में एक आदमी समझेगा या सारे आदमी एक साथ समझ जाएंगे? सब आदमी एक साथ नहीं समझेगा। पहले एक गाँव में परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था प्रमाणित होने की आवश्यकता है. पहली आवश्यकता यही है. उसके बाद हज़ार गाँव, लाख गाँव, पूरा देश हो जाता है. पहले गाँव में जितना समय लगेगा उससे बहुत कम समय में हम हज़ार गाँवों में पहुँच सकते हैं. इसका कारण है - सहीपन की प्यास सर्वमानव में बनी हुई है.
अभी हमारी अपेक्षा है, हमारे देश में जल्दी से जल्दी यह व्यवस्था स्थापित हो. उसके लिए सभी सज्जन, सभी सज्जन संस्थाएं भागीदारी कर सकते हैं. यदि यह व्यवस्था अपने देश में स्थापित हो जाती है तो अपने पड़ौसी देशों में भी स्थापित हो सकती है.
- श्रद्धेय नागराज जी के उद्बोधन पर आधारित (अनुभव शिविर २००७, अमरकंटक)