ANNOUNCEMENTS



Monday, January 2, 2012

साधना का फल

साधना करने वालों का संसार ने सम्मान किया है.  साधना का फल किन्तु संसार को नहीं मिला.  साधना करने वाले को साधना से कुछ मिला या नहीं मिला यह पता नहीं चला.  यह अब तक की कथा है.

साधना का फल संसार को मिलना चाहिए या नहीं?  इस पर आप शोध करिए.

मुझे साधना से जो फल मिला उसको मैंने संसार के सम्मुख रख दिया है.  यह उचित किया या अनुचित किया?

समाधान-समृद्धि पूर्वक जीने का प्रस्ताव संसार के सम्मुख प्रस्तुत किया है.  उसके लिए अध्ययन विधि बताया है. अध्ययन के लिए दर्शन, वाद, शास्त्र, और मानवीय आचार संहिता रूपी संविधान दिया है.  वह आपके अवलोकन करने के लिए प्रस्तुत है.

प्रश्न:  अध्ययन से क्या आशय है?

उत्तर:  अधिष्ठान के साक्षी में, अर्थात अनुभव के साक्षी में या अनुभव की रोशनी में स्मरण पूर्वक किया गया प्रयास अध्ययन है.  यह परिभाषा है.  इसका विवरण इस प्रकार दिया - अध्ययन के लिए जो शब्द का हम प्रयोग करते हैं, उस शब्द के अर्थ स्वरूप में अस्तित्व में वस्तु होती है.  उस वस्तु का ज्ञान हुआ, मतलब हमने अध्ययन किया.  वस्तु का ज्ञान तदाकार विधि से होता है.  हर मानव के पास कल्पनाशीलता है, उस कल्पनाशीलता के आधार पर तदाकार होता है.

प्रश्न: तदाकार से क्या आशय है?

उत्तर: अभी भी आप तदाकार विधि से ही चले हैं.  जैसे - चार विषयों के साथ तदाकार हो जाना.  पांच संवेदनाओं के साथ तदाकार हो जाना.  सुविधा-संग्रह के साथ तदाकार हो जाना.  इस तरह की हविस या मनोगत-भाव से तदाकार होने पर मानव फंस जाता है.  अब यहाँ समाधान के साथ तदाकार होने का प्रस्ताव है.

प्रश्न: अनुभव की रोशनी से क्या आशय है?

उत्तर: अध्ययन कराने वाले के पास अनुभव की रोशनी रहता है.


प्रश्न: अध्ययन करने वाले के पास क्या रहता है?

उत्तर: अध्ययन करने वाले के पास अनुमान रहता है.  मुझको समझा हुआ मान कर ही आप मुझसे अध्ययन कर पाओगे, नहीं तो मुझसे अध्ययन नहीं कर पाओगे.  आपका अनुमान जहां तक बन पाता है वहां तक आपको समझ आता है.  आपका अनुमान जहां नहीं बन पाता है, या हमारा कल्पनाशीलता जहां कुंठित होता है, वहां सच्चाई समझ में नहीं आ पाता है.  बिना समझे कुछ भी करने जाते हैं तो उससे गलती ही होगा, दूसरा कुछ होगा नहीं.  आदमी दो ही स्वरूप में रह सकता है - समाधान के स्वरूप में या गलती के स्वरूप में.

प्रश्न: कल्पनाशीलता इस तरह कुंठित हो जाए तो क्या करें? 

उत्तर: उसके लिए मूल से पुनः जिज्ञासा करना चाहिए.  आप पढ़ सकते हैं, और समझ भी सकते हैं.  आप पढ़िए, जो समझ में नहीं आता है - वह मुझ से समझ लीजिये.  यही इसका विधि है.  समझा हुआ व्यक्ति इस प्रकार समझाने की जिम्मेदारी ले और समझने वाला व्यक्ति समझने की जिम्मेदारी ले तो समझ में आ जाता है.

प्रश्न: यदि प्रस्ताव की सूचना है, और मेरी जिज्ञासा है तो क्या वह समझने के लिए पर्याप्त नहीं है?  या समझाने वाले की फिर भी आवश्यकता है?

उत्तर: - केवल सूचना होना और जिज्ञासा होना समझने के लिए पर्याप्त नहीं है.  समझाने वाले के बिना समझ में नहीं आता.  समझाने वाले के बिना समझने के लिए समाधि होना आवश्यक है.  समाधि के बाद यदि संयम में आपका लक्ष्य स्थिर रहता है तो प्रकृति से सीधे आपको समझ में आएगा.

इस प्रस्ताव की सूचना का महत्त्व इसको समझाने वालों के साथ ही है.

- श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (अक्टूबर २००९, हैदराबाद) 

Sunday, January 1, 2012

समझने में समय

प्रश्न: समझने में बहुत समय लगता है, तब तक जो स्वयं में असंतुष्टि है, उसका क्या करें?

उत्तर: - संतुष्टि तो आप ही में होगा.  संतुष्टि के लिए कोई गोली तो है नहीं की उसको निगलें और समझ गए!  आप अभी समझना चाहें तो अभी समझ सकते हैं, दो वर्ष में समझना चाहें तो दो वर्ष में समझ सकते हैं.  समझने के लिए समझने वाले और समझाने वाले दोनों की भागीदारी जरूरी है.  केवल समझाने वाला पर्याप्त नहीं है, समझने के लिए.  समझने में लगने वाली अवधि समझने-वाले पर निर्भर है.  जैसे - मैं अपनी बात को ५ सूत्रों में भी कह सकता हूँ, २५  सूत्रों में भी कह सकता हूँ, २५००० सूत्रों में भी कह सकता हूँ.  आपको ५ सूत्रों में समझ नहीं आता है तो आपके लिए मैं अपनी बात २५ सूत्रों में कहता हूँ.  २५ सूत्रों में नहीं समझ आता है तो मैं २५००० सूत्रों में कहता हूँ.  समय को लेकर परेशान न हुआ जाए.  समय निरंतर है - वह रुकता नहीं है.  प्रयत्न निरंतर है - चुप तो कोई रहता नहीं है.  प्रयत्न और समय का प्रयोजन के अर्थ में संयोजन होने से समझदारी फलित होता है.

- श्री ए. नागराज के साथ संवाद पर आधारित (अक्टूबर २००९, हैदराबाद)